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##Glimpse of humanity"★★★★
एक कहानी सभी को समर्पित।बात उन दिनो की है जब मे अपनी माता का ईलाज करा था अस्पताल मेरे लिए अनजान था और मे अकेला ही अपनी माता जी का ईलाज करा रहा था एक महिला थी जो हमारे बराबर मे ही ईलाज करा रही थी स्वभाव से दयालु थी हेरानी की बात यह थी की जिस.महिला का वो ईलाज करा रही थी वह महिला बोल नही सकती थी लेकिन दोस्तों.उस महिला का.स्नेह ने मुझे झकझोर कर दिया की उसके बारे मे जितना भी. कह. दो सब कम ही मुझे एक.पल के लिए ऐसा लगा मानो मे अपने धर हू इतना स्नेह उन से मिला की मे अपनी मां को भी भुल गया जब जब मे समस्या मे होता था तब तब वो मेरी मदद के लिए आगे आ जाती थीं जो प्यार आजकल अपनो.मे नही मिलता वो शायद आप कोअस्पताल मे देखने को मिल जाये जिससे भी मे मिला सब अच्छे.एवं.नेक दिल वाले. थे वरना आज के टाइम मे तो बात करना भी.पंसद.नहीं करता आज भी. इंसानियत |जिन्दा हैं और मैंने भी सबकी सहायता. की मुझे जो सुकून मिला मे वो बंया. नही.कर सकता हूँ. मेरा आप सभी से निवेदन है की आप भी. जो सहायता हो सकें. करें मे आप. क़ो यकीन.के.साथ कह.सकता हूँ की आप को अलग .ही.एहसास महसूस. होगा