हृदय संधान
क्या खबर थी की रग रग में समां जाओगे तुम,
मेरी हर श्वांस को संधान बनाकर मेरे हृदय को भेद जाओगे तुम।
मेरी धमनियों में बहते रक्त में घुलकर मेरे मुख का तेज बढ़ाओगे तुम,
मेरे कर्णपटल पर लटके इन स्वर्ण गुच्छों को...
मेरी हर श्वांस को संधान बनाकर मेरे हृदय को भेद जाओगे तुम।
मेरी धमनियों में बहते रक्त में घुलकर मेरे मुख का तेज बढ़ाओगे तुम,
मेरे कर्णपटल पर लटके इन स्वर्ण गुच्छों को...