...

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पति पत्नी
चाहते है,जो पति घर का भट्टा बैठाना ,
मानते नहीं, कभी पत्नी का कहना,
उन्हें लगता, अजी
इनकी तो रोज-रोज की चिक चिक है।
महत्व क्यों दे उनकी बातों को।
आखिर घर तो चलता है,
मेरे ही कमाई की बदौलत।
अगर यह कमाती भी है,
तो उतने में तो उनके शौक ही पूरे नहीं होते।
यह हम पर निर्भर है,
ना कि हम इन पर निर्भर हैं।
तो इनकी अकड़ ही सहे क्यों?
ले दे कर इनकी दुनिया तो,
हमारे इर्द-गिर्द ही तो घूमती है।
तो इन्हें हम पर लट्टू होना चाहिए,
ना कि हमें इन पर।
पर सोच के देखिए,
क्या यह उचित है?
क्यों इतनी नीरसता भरी है?
क्यों नहीं करते एक-दूसरे का सम्मान?
क्या इसी को कहते हैं हमसफर?
अगर हाँ
तो बेकार है,
ऐसे संबंध का,
जहाँ आपस में,
प्यार एवं आत्मसम्मान न हो।
जहाँ वे एक दूसरे को,
टूटने पर सहेजें न,
जहाँ एक दूसरे के दर्द को
महसूस न करें।
तो फिर कैसा रिश्ता है यह?
पति-पत्नी का।
डॉ.अनीता शरण।