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मुझे गँवा दिया
माना खतावार हैं हम,
तेरे गुनाहगार हैं हम,
पर कोई चाह न सके हमें,
क्या इतने बेकार हैं हम।
दिल दिया था तो तोड़ दिया,
रुख जिंदगी का कैसे मोड़ दिया,
गलती और गुनाह में होता है फर्क,
तुमने तो उस फर्क को भी छोड़ दिया।
खैर शिखवा नहीं तुमसे मुझे कोई,
मैंने बबूल बोया था, तुमने कांटा चुभो दिया,
पेड़ कटने के बाद भी काँटे रखे थे तुमने संभाल,
हर उस छेद ने हमारी कश्ती को डुबो दिया।
डरते थे मुसलसल हम की कहीं खो न दें तुम्हें,
तुमने तो डर ही जेहन से मिटा दिया,
समय का फेर देखो जानेमन कैसे,
आज तो तुमने मुझे ही गँवा दिया।
© ✍️शैल
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