बेहतर
नफरतें जंग जुबां की, मूक ही बेहतर
जो न समझे निगाहों को ,गैर ही बेहतर
दिल के हालात का हिसाब कौन लेगा भला
बरस गए आंखों से जज़्बात ,तो ही बेहतर
नब्ज़ कुछ खास नज़्म कहता है
रुह उदास...
जो न समझे निगाहों को ,गैर ही बेहतर
दिल के हालात का हिसाब कौन लेगा भला
बरस गए आंखों से जज़्बात ,तो ही बेहतर
नब्ज़ कुछ खास नज़्म कहता है
रुह उदास...