...

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बेहतर
नफरतें जंग जुबां की, मूक ही बेहतर
जो न समझे निगाहों को ,गैर ही बेहतर
दिल के हालात का हिसाब कौन लेगा भला
बरस गए आंखों से जज़्बात ,तो ही बेहतर
नब्ज़ कुछ खास नज़्म कहता है
रुह उदास उदास रहता है
मुस्कुरा कर टाल दी सिकवे
संभल जाएगी बात,तो ही बेहतर
नफरतें जंग जुबां की, मूक ही बेहतर
जो न समझे निगाहों को ,गैर ही बेहतर
कौन समझा है किसी गैर की जुबाने जंग
जल गई राख हुई सी बदहवास सा मन
लाख करता कोई आगाज़ यही बेहतर
नफरतें जंग जुबां की, मूक ही बेहतर।
© Gitanjali Kumari