...

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मैं ही क्यों
मैं तो वो चिराग था, जिसे न था आँधियों का खौफ़
मगर न जाने क्यों, आज कुछ खौफज़दा सा हूँ मैं

ख़ुद के बनाये रिश्तों में अब, खुद उलझ रहा हूँ मैं
तुझको पाने की चाह में, ख़ुद को ही खो रहा हूँ मैं

वादा था हर मोड़ पे, साथ निभाने का एक दूजे से
मगर सारे वादे निभाता रहूँ, अकेले मैं ही क्यों???

यूँ तो ज़माने भर ने मुझको, उम्र भर ग़म ही ग़म दिए
फिर जिंदगी को छोड़ कर, सिर्फ मैं ही जाऊँ क्यों??
© ऊषा 'रिमझिम'