...

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जी चाहता है
मोहब्बत में चार क़दम चलना चाहता है
नादान दिल बेफिजूल ख्वाहिश चाहता है,

कितनी बार रुसवा हुआ उसके दर पर
फ़िर भी चाहत में उसी संग चलना चाहता है,

उसी की तमन्ना आंखों और दिल में संजोए
पत्थरों से मोहब्बत और दिल्लगी चाहता है,

नहीं होंगे अपने कभी, जानता है बेवफ़ा को
उसकी नज़रों में प्यार की फुहार चाहता है,

छोड़ भी दें मगर मोहब्बत में छोड़ा नहीं जाता
हाथ पकड़ कर, उसी संग चलना चाहता है,

बेवफ़ा निकला दिल भी, चाहत भी उसी की
मेरा होकर भी, धड़कना उसी के लिए चाहता है!

© सुधा सिंह 💐💐