...

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जय गजानन,शुभ गजानन
निर्मल किया मन को मेरे,किया मेरा उद्धार।
पश्चयताप की अग्नि में,जले यह तन बार बार।
भूल की जो साथ न आया,मैं तुम्हारी शरण न आया।
ढूंढ ढूंढ कर तुमको मैं,कहीं नही तुम्हे पाया।
मन के अंदर देखा तो,तुम्हे वहीं बसा पाया।
कैसे पहुँचे तुम तक मेरे,मन की यह पीड़ा।
उसे ही तुमसे कहने का,तुमने ही प्रबंध कराया।
दूर रहता था मैं तुमसे,भाव मेरे थे तुम पर ही।
पर यह मैं प्रकट न करता,रखता उसे मन मे ही।
तुमने ही अवसर दिलाया,तुमने ही बात चलाई।
मेरे मन की पीडा को,तुमने ही दवा लगाई।
करके पश्चयताप मैंने,प्रकट किया अपना भाव।
बड़े प्रेम से स्वीकारा तुमने,मेरे मन का भाव।
धन्य हुआ मेरा यह जीवन,पाकर तुम्हारा प्रेम।
निर्मल हुआ तन यह मेरा,अब मन मे नही कोई घाव।
हुई कृपा तुम्हारी मुझपर,धन्य हुआ यह जीवन।
लक्ष्य दिखाकर तुमने ही,जीवन को सफल बनाया।
होकर सफल इस कार्य मे,तेरे समीप आ जाऊं।
प्रेम मिले मुझे तेरा तो,धन्य जनम कर जाऊं।
तुझसे ही भक्ति मेरी,तुम ही मेरा चिंतन।
कैसे रखूं अब मन के भाव, शब्द नही मेरे दामन।
कृपा तुम्हारी मुझ पर रखना,दूर न होना किसी भी क्षण
सुखदुख की बातें अब,सदा कहनी है तुमसे।
यह भक्ति हर जन्म मिले, संग तुम्हारे हर जीवन।
प्यार तुम्हारा पाकर मैं,धन्य सदा हो जाऊं।
तुम्हारे लिए प्रेम गीत यह,मैं सदा ही गाऊँ।
जय गजानन,शुभ गजानन,जीवन गजाजन,प्रेम गजानन।
संजीव बल्लाल १३/३/२०२४© BALLAL S