आखिरी संवाद
खुले आसमान के नीचे
बड़े अरमान से मुझे उसने थामा
और आंखों में आँखें डाल के पूछा
क्या मंजूर तुझे होगा
ये आसमान छत हो
जमीन पर हो बिस्तर लगा
सिरहाना हो बांह मेरी
और लिबादा हो आगोश मेरा
मैं सुन्न सी देखती रही अपलक उसको
कदम मेरा कुछ पीछे हटा
गिरफ्त उसकी भी कुछ ढीली हुई
पलकों को मगर न उसने न मैंने झपका
' क्या शर्त ये ही...
बड़े अरमान से मुझे उसने थामा
और आंखों में आँखें डाल के पूछा
क्या मंजूर तुझे होगा
ये आसमान छत हो
जमीन पर हो बिस्तर लगा
सिरहाना हो बांह मेरी
और लिबादा हो आगोश मेरा
मैं सुन्न सी देखती रही अपलक उसको
कदम मेरा कुछ पीछे हटा
गिरफ्त उसकी भी कुछ ढीली हुई
पलकों को मगर न उसने न मैंने झपका
' क्या शर्त ये ही...