...

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ग़ज़ल...
काश! मेरे हाथों में, तेरे नाम की लकीर होती
मैं तेरा राँझा होता, और बस तू मेरी हीर होती

तेरे सारे दर्द-ओ-ग़म, मैं अपने ऊपर ले लेता
चोट जो तुझको लगती, तो मुझको पीर होती

एक पल...