...

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मेरी पहली कविता - तुझ पर लिख दूँ कोई ग़ज़ल मैं
तुझ पर लिख दूँ कोई गज़ल मैं,
ऐसी कोशिश किया करता हूँ
नज़रों में लिए तेरी सूरत,
लिखना जब भी शुरू करता हूँ
रह जाता है कोरा कागज़,
तेरे चेहरे में खो जाता हूँ
और गज़ल की अधूरी ये कोशिश,
हर रोज़ किया करता हूँ
तुझ पर लिख दूँ कोई गज़ल मैं...

तेरी आंखें हैं या कोई झीलें,
इन झीलों के बारे में लिख दूँ
है गहराइयाँ इनमें कितनी,
ये अल्फ़ाज़ों में कैसे लिख दूँ
हो जाना है इन में फ़ना अब,
इसलिए डूबा ही रहता हूँ
और गज़ल की अधूरी ये कोशिश,
हर रोज़ किया करता हूँ
तुझ पर लिख दूँ कोई गज़ल मैं...

होंठ तेरे हैं या मय के प्याले,
इस मयशाला के बारे में लिख दूँ
है नशा कितना इन प्यालों में,
बिन उतारे नशा कैसे लिख दूँ
इस नशे के ख्यालों में ही,
मैं मदहोश रहा करता हूँ
और गज़ल की अधूरी ये कोशिश,
हर रोज़ किया करता हूँ
तुझ पर लिख दूँ कोई गज़ल मैं...

ये भोली-भाली तेरी सूरत,
इस चंदा के...