समर
हर दिन एक प्रश्न है
मुंह खोलकर खड़ा है
सुरसा के समान
उसकी आंखे गिद्ध सी
नोचती हैं मुझे
मैं ढूंढने जवाब
निकल पड़ती हूं
जानी अनजानी राहों पर
सुलझाते उलझने
कितनी बार खुद ही
उलझ जाती हूं मैं
कोई नहीं जानता
कितने युद्ध लड़ती हूं मैं
कभी खुद से कभी
खुद के लिए
कभी औरों के लिए
कितने...
मुंह खोलकर खड़ा है
सुरसा के समान
उसकी आंखे गिद्ध सी
नोचती हैं मुझे
मैं ढूंढने जवाब
निकल पड़ती हूं
जानी अनजानी राहों पर
सुलझाते उलझने
कितनी बार खुद ही
उलझ जाती हूं मैं
कोई नहीं जानता
कितने युद्ध लड़ती हूं मैं
कभी खुद से कभी
खुद के लिए
कभी औरों के लिए
कितने...