...

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सफर
साथ चलने का सफर था,
फिर ये आयी दूरियाँ क्यूँ,
क्या थे मसले जिंदगी के,
जो फिसलते फिर संभलते,
कर गुजरने की है चाहत,
फिर ये आयी दूरियाँ क्यूँ |
कौन से वो कर्म थे जो,
खींच लाये जिंदगी को,
जो फिसलते फिर संभलते,
कर्म की मजबूरियाँ क्यूँ,
फिर ये आयी दूरियाँ क्यूँ |
मौन रहना सीख कर भी,
बिन तुम्हारे क्या करूँगा,
चीख़ सकता भी अगर मैं,
फिर भी चाहत में रहूंगा,
है हमारी जिंदगी में,
आज भी मजबूरियाँ क्यूँ,
फिर ये आयी दूरियाँ क्यूँ |

© Devesh Shukla