फरवरी
जब भी इस माह-ए-फरवरी का जिक्र होता है ,,
तमाम ज़ख्म सदाब हो जाते थे,,
हमने भी नई राह इख्तियार कर ली ,,
इस माह को अपने हिस्से से बे दखल कर दिया,,
अब सुकून से जिन्दगी बसर होती हैं,
© jitensoz
तमाम ज़ख्म सदाब हो जाते थे,,
हमने भी नई राह इख्तियार कर ली ,,
इस माह को अपने हिस्से से बे दखल कर दिया,,
अब सुकून से जिन्दगी बसर होती हैं,
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