...

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वक्त
घरवाले, बाहरवाले,इन सभी से,
कभी कभी कितना ऊब जाता है मन,
जी करता है कि भाग जाएं ,
कुछ वक्त के लिए ,कुछ दूर इन सब से,
(ऐसा नहीं की नाराज होकर जाने का मन हो ,बल्कि बस खुद के लिए थोड़ा सा वक्त सब से चुराया जाए बस )
न अपनो की सुने न गैरों की,
बस कुछ वक्त हो सिर्फ अपने लिए ,
खुद के लिए ,खुद को समझने,
और समझाने के लिए,
अपने मन की गिरह खोलने के लिए,
अपने मन के दर्पण में ,
खुद से रूबरू होने के लिए,
अपने अशांत मन को शांत करने के लिए,
बस कुछ वक्त चाहिए होता है ,
कभी कभी खुद को समझने के लिए..
(copyright)