क्या लिखूं!
शून्य हृदय में कविताओं का थम गया है अब तो गौरव गान।
शब्दों के दृढ़ संकल्पों का क्षण भर में टूटा अभिमान।
सरस सलिल सुंदर वाणी का श्रवण न करते अमृतपान।
सुमन सरिस मधुमय छंदों के छित विक्षित परिचित प्रतिमान।
जो बहार बन वर्षा गावें उन कवियों के सभागार में नहीं रहा...
शब्दों के दृढ़ संकल्पों का क्षण भर में टूटा अभिमान।
सरस सलिल सुंदर वाणी का श्रवण न करते अमृतपान।
सुमन सरिस मधुमय छंदों के छित विक्षित परिचित प्रतिमान।
जो बहार बन वर्षा गावें उन कवियों के सभागार में नहीं रहा...