...

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" दूध का कर्ज़ "
ऐसा क्या कसूर किया, बछड़े को ना दूध मिला ..
भटके सड़को पर, गयिया भी ! बंदे तुझको दूध पीला !!

कभी बैलगाड़ी संग तना ...
कभी हल के संग बल बना ...
चार पहिये, क्या जुड़े ! जीवन इसका कल बना ...
दर दर भटके, गंद खाया भी, गले अटके...
खेतों का, जो राजा था कभी...
फिरे हादसों का यमराज बना ...
गयिया को जिसने जना ...
मौत भी मिली, ऐसी भयानक...
थाली में, जो बीफ 🍖 बना ...

कर्ज़ ! तेरे दूध का चुकाया, ना ली ! कोई माया ...
चारा ही तो खाया, काम ही तो आया...
कैसा कुफर कमाया, बंदे ! जो तेरे घर आया...
कैसा अंध्यारा छाया, बलवान हो कर भी...
अपनी माँ का दूध खुलके पी ना पाया ...
बंदे तेरे दुख तोड़ने में, अपना आप गवाया ...

ना प्यार मिला , ना दुलार मिला...
धूप छांव, मेहनत करके भी ! बंदे, तेरा अत्याचार मिला ...
भटकी माँ, भटके बच्चे ! सारी उम्र, बंदे तेरा स्वार किला...
ऐसा क्या कसूर किया, बछड़े को ना दूध मिला ..
भटके सड़को पर, गयिया भी ! बंदे तुझको दूध पीला !!

सुखविंदर ✍️🌄✍️

© Sukhwinder

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