...

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फुर्सत ही फुर्सत...
इन दिनों काफी फुर्सत में हूं
ना सर पर कोई इम्तिहान है ,
ना ही किसी परिणाम का इंतजार है।
खुद में खोई कभी खुश कभी गुमसुम सी हूं,
इन दिनों काफी फुर्सत में हूं।

घंटों यूं ही बैठकर खिड़की के बाहर देखती हूं खेतों को,नदी को
और पल पल गुजरता देखती हूं पल पल में सदी को।
मन को बहुत भाता है प्रकृति को निहारना,
दिल खुश कर जाता है उसे अपने हाथों से सवारना।

और क्या कर रही हूं आजकल???
पछता रही हूं कि अब भी तुम्हारा इंतजार कर रही हूं,
खुश हो रही हूं कि तुमने इतना वक्त तो दिया
तभी तो इन फुर्सत के पलों में तुम्हें याद कर लिया।

याद करने को वैसे तो बहुत कुछ है पर सवाल यह है
की फुर्सत में तुम कभी याद क्यों नहीं करते?
क्या तुम्हें नहीं याद बहुत सारी कहानियां
बीच में ही छोड़ दी थी जो बाकी है सुनाने को।
क्या तुम्हें नहीं लगता आ जाना चाहिए तुम्हें मुझे मनाने को?

क्या सच में भूल गए हो या खुद में मशगूल हो गए हो?
या बस मजबूर हो गए हो कि काम है ज्यादा जरूरी,
इतने भी मत खो जाना काम में कि खुद से हो दूरी। कुछ पल फुर्सत के तुम भी निकाल लो,
ज्यादा नहीं बस इतने की अपने शौक पूरे कर डालो।

काश मुझसे बात करना भी एक शौक होता तुम्हारा,
लेकिन यह शौक नहीं ये तो एक जानलेवा आदत है।
अच्छा है तुमने इससे छुट्टी पा ली,
खुश तो हो? कैसी है सेहत तुम्हारी?

देखो फिर मेरे फुर्सत के सारे पल तुम्हारे अधीन हो गए कोरे से मेरे पर तुम्हारे ख्यालों से रंगीन हो गए।
बंद करो आना मेरे मन में हर वक्त,
लगाने दो मुझे भी अपने यादों पर पहरे सख्त।

फिर मैं भी खुलकर अपने फुर्सत के पलों का मजा उठाऊंगी,
बेफिक्र बारिश में नहाऊंगी ,
जो गाने तुम्हें कभी पसंद नहीं थे उन्हें जोर से बजाऊंगी,
लिखकर कागज पर अपने मन की भड़ास मिटाऊंगी।
अपने फुर्सत में ही नहीं, हमेशा के लिए मुक्त हो जाऊंगी।
© accio thoughts