...

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मुहब्बत का रंग!
मुहब्बत का रंगीन रंग मिरी जाँ पर बरसे रंग,
अज़ल हो ये बात की इस ज़बाँ पर बरसे रंग।

कब तक तिरी पैरहन सर-ए-आम रंगीन होगी,
कि इस चश्मदीद बदन के कहाँ पर बरसे रंग।

तिरी छुअन से इस कली में तो गुल आने लगें,
उस कली की छुअन के निशाँ पर बरसे रंग।

तिरी ज़ुल्फ़ों में बंधे हुए, मेरी बन्दगी के फूल,
उन फूलों की इक-इक मेहरबाँ पर बरसे रंग।

तिरी जश्न-ए-रंग में मिरी इश्क़ की ग़ज़ल हो,
फिर तिरे होंठों से मिरी सुख़न पर बरसे रंग।

तिरे कूचे में तेरा आना तो दिलकश दिल हुआ,
ग़र ये सच हैं तो फ़िर मिरे हैराँ पर बरसे रंग।

तिरी ओर से सरसराहट सी आवाज़ आई हैं,
ग़र मैं सही हूँ तो मिरे इम्तिहाँ पर बरसे रंग।

तिरे रंग में तो रंग जाएगा ये अलबेला "रूह",
इस मुहब्बत के रंग की दास्ताँ पर बरसे रंग।

~शिवम राज व्यास "रूह"

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