...

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मौत दर मौत का कमाल देख लो...

मौत दर मौत का कमाल देख लो...
हर तरफ आंसू और बवाल देख लो...

तुम्हे अभी भी रंजिशों के मुक़दमे लड़ने हैं...
बटवारे में मिले हुए मकान देख लो...

दादा से बाप के पांच भाई और हैं...
कफ़न कहाँ बचा अब, रुमाल देख लो...

शर्म भी तो अब बेपर्दा हो गयी...
ढक के निकालो चेहरा, तब आखिरी बार देख लो...

वतन है तो, उसका हर कोई हिस्सा है तो, पर लेकिन...
चलेगी उसकी ही जिसका है अखबार, लो देख लो...

सोच रहा है "सारांश", ज़रूरी है भी तो आखिर, क्या...
भूख, लाचारी, हवा या ये आखिरी शाम, देख लो...

मौत दर मौत का कमाल दे लो...
हर तरफ आंसू और बवाल देख लो...

© सारांश