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मत पड़ने दो उन्हें फर्क़...
मत पड़ने दो उन्हें फर्क़ अपने जीने-मरने से,
कम नहीं होगी मुसीबत किसी के सोचने से।

काँटों की कमी नहीं है उनकी अपनी राह में,
होता होगा मलाल उन्हें बेवजह वो चुभने से।

सोचते होंगे पर वक़्त पे किसी का बस नहीं,
होते होंगे हताश वक़्त पे वक़्त ना मिलने से।

सबकी परवाह में वो भूल गये हैं ख़ुद को ही,
करेंगे फिर से वो याद, तुम्हारे याद करने से।

उँगली उठाने से पहले देखना निशाना 'धुन',
एक उनपे, तो तीन तुमपे ही होंगी उठने से।
© संगीता साईं 'धुन'

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