...

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“दिल बेचारा”
हम सोचे थे वो जहां कहां नसीब हुआ
वो उतना ही दूर था जितना क़रीब हुआ

हमने चाहा जिसे वो कहां मिल सका
हमसे तो डाली का एक पत्ता भी न हिल सका

दिल हमारा आग सा न पूरा जल सका
उगता सूरज मेरा कभी न ढल सका

हमसे वफ़ा किसी से न हो सकी
ये दुनिया हमारी कभी न हो सकी

तस्वीर उसकी आंखों से हट चुकी
पर यादें न दिल से कभी मिट सकी

हम थे वक्त था ये संसार था हमारा
अधूरा सा रह गया इसमें नाम हमारा

लौटा नहीं सकती तुमको वक्त तुम्हारा
मर चुका था कभी ज़िंदा ये दिल बेचारा
© ढलती_साँझ