...

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गुलाबों का सफ़र
गया तो था एक बिगिचे में
जहां के फिज़ाओं में तेरे ख्वाब की मेहक थी
में भ्रमर था महज़ एक, आंखो में लहज़ थी..

चला कुछ देर और में, समिट के ख्वाबों कों तेरे
पता चला झोली भर के दिल् में कुछ दहक सी
धुआँ-धुआँ सी किनारे पे अटका,
आगे मेरे आग बुझाने इश्क़-ए-समंदर थी..

में डुबा इस कदर, बे-सहारा और बेअसर
जेसे गुलाब की पांखुरीओं का...