...

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जनहित की कविता - 1

रोज़ होये अत्याचार,
रोज़ होये बलात्कार !
व्यवस्थाएं तार तार,
सोई क्यूं रहे सरकार !!

हमार अन्नदात किसान,
सही दाम ही समाधान !
कर्ज वसूले बन हैवान,
उद्योग डूबात बिन व्यवधान !!

मजदूर सारे है परेशान,
रोज़ी बिन कैसे टिके जान ?
अस्मत पर भारी हैवान,
अपराधी है सीना तान !!

सवाल पूछने की सोच नहीं,
जवाबदेही कहीं दिखे नहीं !
चारों खंबे जर्जर है,
जनता समझती ही नहीं !!

कुछ उलझी क्रिकेट में,
नशे में खोजें समाधान !
अनुशासन की धूमिल शान,
महामारी भी लेती जान !!

मुंह में राम बगल में छुरी,
जनहिती हर बात अधूरी !
जाग उठे गर जनता सारी,
बच पाएगी शान हमारी !!