#Wo_90's_ki_life
वो भी एक दौर था,जब अठन्नी का भी बजार में शोर था
टीवी में बस दूरदर्शन का ही जोर था, जरूरतें कम थी जीवन में इसलिए ना कोई दुख ना ही अफसोस था
मोहब्बतें दूर कहीं छत से ही निभा लेते थे,
देखले वो बस एक बार, तो दिनभर मुस्कुरा लेते थें
रातों में बिजली जाते ही, दोस्तों को पुकार लेते थे।
नानी, दादी के घर आई हुई लड़की को ताक झाँक करके निहार लेते थे, उसके वापस आने के इंतज़ार में पुरा साल खुशी से गुजार लेते थे। कोल्ड ड्रिंक का हल्ला नहीं,रूह अफ़ज़ा का बोल-बाला था। वो ए सी का नहीं कूलर का जमाना था।
कुछ ऐसा बचपन हमारा था, वो 90's का दौर जरा़ निराला था,वो बजारो मे लगते मेलो का अजब नज़ारा था कुछ ऐसा बचपन हमारा था।
टीवी में बस दूरदर्शन का ही जोर था, जरूरतें कम थी जीवन में इसलिए ना कोई दुख ना ही अफसोस था
मोहब्बतें दूर कहीं छत से ही निभा लेते थे,
देखले वो बस एक बार, तो दिनभर मुस्कुरा लेते थें
रातों में बिजली जाते ही, दोस्तों को पुकार लेते थे।
नानी, दादी के घर आई हुई लड़की को ताक झाँक करके निहार लेते थे, उसके वापस आने के इंतज़ार में पुरा साल खुशी से गुजार लेते थे। कोल्ड ड्रिंक का हल्ला नहीं,रूह अफ़ज़ा का बोल-बाला था। वो ए सी का नहीं कूलर का जमाना था।
कुछ ऐसा बचपन हमारा था, वो 90's का दौर जरा़ निराला था,वो बजारो मे लगते मेलो का अजब नज़ारा था कुछ ऐसा बचपन हमारा था।