#Wo_90's_ki_life
वो भी एक दौर था,जब अठन्नी का भी बजार में शोर था
टीवी में बस दूरदर्शन का ही जोर था, जरूरतें कम थी जीवन में इसलिए ना कोई दुख ना ही अफसोस था
मोहब्बतें दूर कहीं छत से ही निभा लेते थे,
देखले वो बस एक बार, तो दिनभर मुस्कुरा लेते थें
रातों में...
टीवी में बस दूरदर्शन का ही जोर था, जरूरतें कम थी जीवन में इसलिए ना कोई दुख ना ही अफसोस था
मोहब्बतें दूर कहीं छत से ही निभा लेते थे,
देखले वो बस एक बार, तो दिनभर मुस्कुरा लेते थें
रातों में...