...

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गजल - ४

हिम्मत मेरी टूट रही है...
मेरी किस्मत मुझसे रूठ रही है...

ख्वाहिशे सब छुट रही है...
सपनो की दुनिया झूठ लग रही है...

न जाने क्यो सब अंजान सा है...
जिंदगी जैसे घुट रही है...

घडी की टिक टिक भी चुभ रही है...
जैसे सदियाँ पीछे छुट रही है....

हिम्मत अब मेरी छूट रही है....
किस्मत भी मुझसे रूठ रही है...!!


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