कभी कभी
कभी लगता है की उदास हूं मैं
जो ना बुझे सदियों से लगी प्यास हूं मैं
किसी अपने से मिलने की आस हूं मैं
कभी लगता है की उदास हूं मैं
सूख जाता हूं तो रेत हो जाता हूं मैं
समर्पण में हरा खेत हो जाता हूं मैं
रंगों में बस बेरंग श्वेत हो जाता हूं मैं
ख़ुद के ही जवाब से निराश हूं मैं
कभी लगता है की उदास...
जो ना बुझे सदियों से लगी प्यास हूं मैं
किसी अपने से मिलने की आस हूं मैं
कभी लगता है की उदास हूं मैं
सूख जाता हूं तो रेत हो जाता हूं मैं
समर्पण में हरा खेत हो जाता हूं मैं
रंगों में बस बेरंग श्वेत हो जाता हूं मैं
ख़ुद के ही जवाब से निराश हूं मैं
कभी लगता है की उदास...