...

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मैं हूं
मैं बोलती बहुत ज्यादा हूं,
पर इस भीड़ की आवाज़ से बहुत डरती हूं,
मैं छोटी - छोटी बातों के बारे में भी सोचती बहुत ज्यादा हूं,
मगर जब मुझसे मेरी राय पूछता है, तो बताने से बहुत कतराती हूं,
मैं खुश बहुत जल्दी हो जाती हूं,
पर आने वाले दुख के ख़्याल से बहुत डरती हूं,
मैं अक्सर बातों को नज़र अंदाज़ कर देती हूं,
पर मेरे गुस्से से खुद मैं बहुत डरती हूं,
मेरी बातें कभी ख़त्म नहीं होती हैं,
मगर कभी-कभी ख़ामोशी का चादर ओढ़ लेती हूं,
क्योंकि जानती हूं मैं कि उस समय मेरी बातें तोड़ सकती है किसी का दिल, और किसी कीमती रिश्ते को भी,
मैं रहती हर दफा लोगों से बीच में हूं,
मगर किसी को अपना बनाने से डरती बहुत हूं
© It's.a.raaz