...

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जिंदगी तू मुक़म्मल नही
ज़िंदगी तू मुक़म्मल नही , फिर भी पुरज़ोर कोशिश करती है ,
आज़माती ही रहती हर पल , एक कतरा नवाज़िश न रखती है।
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राह-ए-सदाक़त पर चलने का , अक्सर अंज़ाम यही होता है ,
मयस्सर होती तनहाइयाँ ही , तू तो झूठ पर मेहरबान होती है।
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मुक़म्मल नही तू फिर भी , मुझे बेहद नाज़ होता है तुझ पर...