...

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" बेटी की अभिलाषा "
चाह नहीं , जीवन भर बन बाला इतराऊ
चाह नहीं , पिता - पति के नाम से जीवनपर्यन्त जानी जाऊ
चाह नहीं , पैसो और गहनों के प्रति ललचाऊ
चाह नहीं , सिर्फ कोमलांगिनी रूप कहलाऊ
मुझे मौका देना मेरे पालक माली
फिर हुनर मेरा भी लेना तुम देख
मातृभूमि पर शीश चढ़े जब
उसमे बेटियों के भी हो शीश अनेक
© Gayatri Dwivedi