...

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"आज़ाद परिंदे की तरह"
आज़ाद परिंदे की तरह,
आकाश नापना है..!
ख़ुद की ख़ामियों को,
ख़ुद ही भाँपना है..!

ख़ूबियाँ दिख जायेंगी,
ज़माने को यूँ ही..!
किरदार को असरदार कर,
अपने अहम् को ढाँकना है..!

कौन कितना क़ाबिल,
यहाँ अच्छे बुरे में सभी शामिल..!
गैरों की गलियों में अपने कितने,
सही समय पर आँकना है..!

दूसरे की आलोचना न करना,
पहले स्वयं के भीतर झाँकना है..!
कहावत सच है ये कि,
यहाँ थोथा चना बाजे घना है..!
© SHIVA KANT