...

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कोरोना का कहर और बन्द पिंजरे की दास्तां
बंद पिंजरा अपनी दास्तां कह गया
हैरान हूँ ये देखकर कि वक़्त कुछ ऐसे पलट गया

पिंजरे में बंद कर देने वाला इंसान
आज खुद पिंजरे में बंद हो गया
हैरान हूँ ये देखकर कि वक़्त कुछ ऐसे पलट गया

जिस प्रकृति पर किये थे हमने हर तरफ से वार
कभी पेड़ काटकर तो कभी दूषित किया बार बार
मानो आज एक एक से वो बदला लेने को हो तैयार

वो मौसम की ठंडी हवा
न कोई शोर न कोई परवाह
जहां जाते थे हम ढूंढने मन की ख़ुशी , इस प्रकृति में देखने
आज वही प्रकृति जैसे निकली हो हमे ढूंढने
वो हजारो जानवर बेफिक्र होकर जो निकले हैं बाहर
लगता है ऐसा कि शायद हमने ही छीन लिया था उनसे उनका संसार

कितना मुश्किल से हो गया है एक जगह पर बैठना
पर सोच को बदलकर देखो क्या मिलता ही है कभी हमें इतना अच्छा मौका
अपनों के साथ बैठकर खूब सारी बातें करना
जो कहीं गुम हो गया था वो बचपन सबका
एक साथ बैठकर खेलना

इस पल को अच्छे से जीलो यारो
बिना घर से बाहर निकले कोरोना से जीतलो यारों

----------हर्षिता अग्रवाल