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साँझे रिश्ते
                      साँझे रिश्ते              


हमने साँझे रिश्तों को जिया है
सूख गया है जो आज
एकल परिवार के एकांत में
हमने उस जीवन रस को
अंजुरी भर भर कर पिया है ।

गर्मी की छुट्टियों में नानी , दादी का घर ही
एकमात्र  ' डेस्टिनेशन ' होता था
जो मज़ा आज किसी
हिल स्टेशन पर भी नहीं आता है
वो मज़ा उन तपती दुपहरियों में
साथियों के साथ  धमाचौकड़ी
मचाने में आता था
छेदहे मटके की धार से हम
भाग कर गले मिलते थे
एक दूसरे को देखकर
दिलों के फूल खिलते थे
ममेरे , चचेरे , फुफेरे , मौसेरे
भाई बहनों के रिश्ते.....
सिमट कर रह गए हैं जो
  ' कज़न्स ' के दायरे में
हमने उन प्यारे रिश्तों को
विस्तार से जिया है
जी हमने साँझे रिश्तों को जिया है ।

चाची , मामी के हाथों की रोटियों का
सौंधा स्वाद
बुआ , मौसी का दुलार और मनुहार
नानी , दादी की मीठी लोरियाँ और....
दादा नाना की कहानियों को सुना है
चाचा मामा के कंधों की सवारी
मौसा , फूफा संग मासूम सी यारी
स्टापू , कैरम , छुपम छुपाई , अंताक्षरी जैसे.....
बिना पैसे के खेल खेलकर
बेशकीमती मज़ा लिया है
हाँ हमने साँझे रिश्तों को
जी भर कर जिया है ।


पिटाई के डर से एक दूसरे की गलती ....
अपने सर ले लेते थे
खेलते हुए चोट लग जाने पर
अपने साथियों के ज़ख्मों पर ख़ुद ही
हल्दी तेल से मरहमपट्टी कर देते थे
आज भी ज़िन्दगी के पथरीले रास्तों पर
मिले ज़ख्मों को .......
प्रेम के उन्हीं कच्चे और सच्चे
धागों से सिया है
हाँ दोस्तों हममें से बहुतों ने
इन साँझे रिश्तों को जिया है ।

               पूनम अग्रवाल