मुझे किसी पर क्यों ए'तिबार होता नहीं
मुझे किसी पर क्यों ए'तिबार होता नहीं
किसीको देख ये दिल बेक़रार होता नहीं
तू अपने दिल पे ज़रा हाथ रखकर के बता
मुझे रुला कर तू शर्म-सार होता नहीं
तुम्हारी खातिर मैं कितनो से मुँह मोड़ लिया
ए काश के तुमसे मुझको प्यार होता नहीं
वो शाम जिसमे हम दोनो मिला करते थे
वो शाम का मुझे अब इंतिज़ार होता नहीं
मैं सोचता हूँ के न टुटता वफ़ा अपनी
तेरी इरादों का पर यूँ दीदार होता नहीं
© Roshan Rajveer
किसीको देख ये दिल बेक़रार होता नहीं
तू अपने दिल पे ज़रा हाथ रखकर के बता
मुझे रुला कर तू शर्म-सार होता नहीं
तुम्हारी खातिर मैं कितनो से मुँह मोड़ लिया
ए काश के तुमसे मुझको प्यार होता नहीं
वो शाम जिसमे हम दोनो मिला करते थे
वो शाम का मुझे अब इंतिज़ार होता नहीं
मैं सोचता हूँ के न टुटता वफ़ा अपनी
तेरी इरादों का पर यूँ दीदार होता नहीं
© Roshan Rajveer