ग़ज़ल
साब इक योजना चला रहे हैं
उल्लू को गदहे पर घुमा रहे हैं
कंठी माला पहन के बगुले अब
मंदिरों में भजन सुना रहे हैं
बाज के मुॅंह में देखकर इक साॅंप
मेंढ़क अब तालियाॅं बजा रहे हैं
कल से बंदर को टाइफाइड है
इसलिए शेर को नचा रहे हैं
ग़ज़लें अख़बार हो रहीं हैं और
हम फ़क़त क़ाफिया निभा रहे हैं
बैठकर मेरे कंधे पे 'जर्जर'
वो मुझे तैरना सिखा रहे हैं
पास खुद को बिठा के 'जर्जर' अब
खुद को ही हम हॅंसा रुला रहे हैं
© जर्जर
उल्लू को गदहे पर घुमा रहे हैं
कंठी माला पहन के बगुले अब
मंदिरों में भजन सुना रहे हैं
बाज के मुॅंह में देखकर इक साॅंप
मेंढ़क अब तालियाॅं बजा रहे हैं
कल से बंदर को टाइफाइड है
इसलिए शेर को नचा रहे हैं
ग़ज़लें अख़बार हो रहीं हैं और
हम फ़क़त क़ाफिया निभा रहे हैं
बैठकर मेरे कंधे पे 'जर्जर'
वो मुझे तैरना सिखा रहे हैं
पास खुद को बिठा के 'जर्जर' अब
खुद को ही हम हॅंसा रुला रहे हैं
© जर्जर