बस यूँही..
किस हद तक तुझे प्यार करुं,
ग़र रखूं हद तो क्या प्यार करुं..
वाजिब नहीं मेरा दायरों में सिमटना
मैं फ़क़त उस चाँद से प्यार करुं..
होंगे बाज़ारों में खरीददार कई
या मोल...
ग़र रखूं हद तो क्या प्यार करुं..
वाजिब नहीं मेरा दायरों में सिमटना
मैं फ़क़त उस चाँद से प्यार करुं..
होंगे बाज़ारों में खरीददार कई
या मोल...