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लक्ष्यसिद्धि
#त्रिभ्यूट_इन_इंक
प्रयास एक लक्ष हो, सतर्क और दक्ष हो,
कोई चाहे कुछ कहे, तुम सदा निष्पक्ष हो।
चेतना सूदृढ़ रहे, स्वप्न में हृदय कहे,
अब लक्ष्य दूर ना रहे, हम सदैव लक्ष्य पर रहें।।
*************************************
हर बाण लक्ष्य पर लगा किया,
हर वार पार्थ को भेद गया।
यह कौन धनुर्धर ? कौन गुरु ?
कितना अद्भुत अभ्यास किया ?
मुख ग्राम सिंह का खुला रहा,
तीरों से पूरा भरा रहा।
पर रक्त बिंदु न एक गिरा!!
वह कौन कि जिसने विद्ध किया ?
उत्तम सामर्थ्य यों सिद्ध किया।
यह लक्ष्यवेध, यह शर-संधान,
सर्वोत्तम है! सर्वोत्तम है!!
मैं नहीं रहा सर्वश्रेष्ठ अहा!
यह निश्चित ही श्रेष्ठतम है।
एकलव्य तभी चल कर आया,
श्वान मुख से तेल निकाल लिए।
गुरुदेव कह साष्टांग किया,
हत्प्रभ गुरु द्रोण, अवाक सभी।
प्रतिभा दिखाकर बनवासी ने,
श्रद्धा का अपनी प्रमाण दिया।
दीक्षा मन से, शिक्षा तन से,
श्वासों से नित अभ्यास किया।
गुरुवर ने दिया वरदान यही,
तेरा लक्ष्यवेध अनूप रहे,
एकलव्य युगो युग तक तू ही,
लक्ष्यसिद्धि का भूप रहे।।
© drajaysharma_yayaver
प्रयास एक लक्ष हो, सतर्क और दक्ष हो,
कोई चाहे कुछ कहे, तुम सदा निष्पक्ष हो।
चेतना सूदृढ़ रहे, स्वप्न में हृदय कहे,
अब लक्ष्य दूर ना रहे, हम सदैव लक्ष्य पर रहें।।
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हर बाण लक्ष्य पर लगा किया,
हर वार पार्थ को भेद गया।
यह कौन धनुर्धर ? कौन गुरु ?
कितना अद्भुत अभ्यास किया ?
मुख ग्राम सिंह का खुला रहा,
तीरों से पूरा भरा रहा।
पर रक्त बिंदु न एक गिरा!!
वह कौन कि जिसने विद्ध किया ?
उत्तम सामर्थ्य यों सिद्ध किया।
यह लक्ष्यवेध, यह शर-संधान,
सर्वोत्तम है! सर्वोत्तम है!!
मैं नहीं रहा सर्वश्रेष्ठ अहा!
यह निश्चित ही श्रेष्ठतम है।
एकलव्य तभी चल कर आया,
श्वान मुख से तेल निकाल लिए।
गुरुदेव कह साष्टांग किया,
हत्प्रभ गुरु द्रोण, अवाक सभी।
प्रतिभा दिखाकर बनवासी ने,
श्रद्धा का अपनी प्रमाण दिया।
दीक्षा मन से, शिक्षा तन से,
श्वासों से नित अभ्यास किया।
गुरुवर ने दिया वरदान यही,
तेरा लक्ष्यवेध अनूप रहे,
एकलव्य युगो युग तक तू ही,
लक्ष्यसिद्धि का भूप रहे।।
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