...

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एक ख़त
बदले कई मौसम बार-बार हर तारीख़ पर
मुझे बस इंतज़ार ख़त्म होने का इंतज़ार रहा
खिले कई फूल कई बार हर शाख़ पर
मुझे एक-एक पत्ते के गिरने का ख़बर रहा

लिखे कई नज़्म कमरे के हर दीवार पर
फिर कई लबों पर सिर्फ तेरा ही ज़िक्र रहा
मिला जब मुझे एक ख़त तेरे नाम का
फिर क्या धूप क्या बारिश, सबसे मैं बेख़बर रहा
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