फितरत
#जून
चार जून की बात है
उसमें भी कुछ घात है
कौन बनेगा समय का साहु
वक्त की यही तो चाल है
बिछा के बिसात धोखोंं की
आदमी बनता होशियार है
उसे नहीं पता कि
खुदा के हाथों ही होती
हर एक चाल है
उसके ही...
चार जून की बात है
उसमें भी कुछ घात है
कौन बनेगा समय का साहु
वक्त की यही तो चाल है
बिछा के बिसात धोखोंं की
आदमी बनता होशियार है
उसे नहीं पता कि
खुदा के हाथों ही होती
हर एक चाल है
उसके ही...