...

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एक शख्स
मुझमें खोया एक शख्स ढूंढता है ख़ुद को।
अब तो कोई मुझे उसका पता दे दें।
ना जाने कबसे बेघर हुआ है वो नादान।
कोई उसे घर में ही जीने की सज़ा दे दें।।
हम तो काफिलों में ही थे लापता कब से?
काफिलों को कोई ठहरने की मेरी इल्तेज़ा दे दें।
जानता कौन है उसको जो है मौजूद ख़ुद के अंदर?
उसको ढूंढ कर अपनी बाहों में ले और ज़िन्दगी का मज़ा दे दें।
ना - काफ़ी है दस्तूर को ही जिए जाना ज़िंदादिल।
शरफरोशी है जो मुझमें कोई उसे...