घर से जुडी अनूठी यादें
मेरा घर प्रतीत होता है जैसे भू पे स्वर्ग,
जीवन के पहलू जहाँ सीखे मैंने यही मेरा प्रथम वर्ग |
चलना, गिरना,बोलना यही पर पढा मैंने |
शरारतों का उदगम भी यही पाया मैंने |
बड़े लोग आकर दिवारें रंगीत तो करते थे |
पर उनपर लिखने-सजाने वाले असल कारीगर हम थे|
रोज़ उन खंबों पे लटकर करतब दिखाना पेशा था...
जीवन के पहलू जहाँ सीखे मैंने यही मेरा प्रथम वर्ग |
चलना, गिरना,बोलना यही पर पढा मैंने |
शरारतों का उदगम भी यही पाया मैंने |
बड़े लोग आकर दिवारें रंगीत तो करते थे |
पर उनपर लिखने-सजाने वाले असल कारीगर हम थे|
रोज़ उन खंबों पे लटकर करतब दिखाना पेशा था...