कविता 1: मेरे जाने के बाद
मेरे जाने के बाद
मेरे आने से पहले
तुम दरीचा-ए-दहर पर
मेरा इंतज़ार नहीं करना...
संँवारना ख़ुद को नई किसी
बसंत की सुंदर बेल-सा
किसी पतझड़ की सूखी शाख़ सा
ख़ुद को बेज़ार नहीं करना...
ये धड़कता पत्थर
तुम्हारी ही तो अमानत है
ज़माने के आगे देखो
इसका इस्तेहार नहीं करना...
मेरी तन्हाइयों को तुम सीने से...
मेरे आने से पहले
तुम दरीचा-ए-दहर पर
मेरा इंतज़ार नहीं करना...
संँवारना ख़ुद को नई किसी
बसंत की सुंदर बेल-सा
किसी पतझड़ की सूखी शाख़ सा
ख़ुद को बेज़ार नहीं करना...
ये धड़कता पत्थर
तुम्हारी ही तो अमानत है
ज़माने के आगे देखो
इसका इस्तेहार नहीं करना...
मेरी तन्हाइयों को तुम सीने से...