...

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काश वक्त रहते संभल गए होते
अगर वक्त रहते संभल गए होते ,
तुम यूं मुश्कुराते हुए फिर न आए होते,
तब शायद हम फिर से, यूं न मिले होते ।
मंजिल तुम्हारे साथ कभी तय ही नहीं था,
साथ हमारे तुम्हारा कभी हाथ ही नहीं था ,
यूं दीवाने से भटक गए थे हम,
तुम्हारे प्यार में कुछ बहक गए थे,
साथ बेरुखी का थामे हुए थे,
तुम्हारे आवाज़ के दीवाने हम
दीदार पर कुछ यूं पिघल से गए थे ,
काश वक्त रहते संभल गए होते
यूं तन्हा रातों में बेचैन से न रहते
अपनी दुनिया जो बना ली थी तुम्हे,
बिछड़ने का गम न माना रहे होते।

~ ख्वाईश
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