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लो कलयुग आ गया
रामचन्द्र जो कह गए सिया से
दास्तां दे गये आने वाले युग का
कलयुग वो कहलाया है ।
बन्धन नहीं प्रेम का यहां
अपनों से अपनापन न रहा
मां बाप न पूजे जाते जहां
मित्रों से शत्रुता का व्यवहार
तो आ गया है वो "कलयुग"।
टीस सुन सुन कर यहां कोई न सुनता
जन का भी यह दोष नहीं
ये सब इस युग की ही तो छाया है
जहां अपनों ने अपनों को खाया है
कुटुम्ब भी एक रहा नहीं
इस युग में इस के टुकड़े कई ।
रामचन्द्र जो कह गए सिया से
जिस युग का नाम उकेरा था
कलयुग में हम जीते हैं
ये जीवन बड़ा ही फि़का है ।
© preet
दास्तां दे गये आने वाले युग का
कलयुग वो कहलाया है ।
बन्धन नहीं प्रेम का यहां
अपनों से अपनापन न रहा
मां बाप न पूजे जाते जहां
मित्रों से शत्रुता का व्यवहार
तो आ गया है वो "कलयुग"।
टीस सुन सुन कर यहां कोई न सुनता
जन का भी यह दोष नहीं
ये सब इस युग की ही तो छाया है
जहां अपनों ने अपनों को खाया है
कुटुम्ब भी एक रहा नहीं
इस युग में इस के टुकड़े कई ।
रामचन्द्र जो कह गए सिया से
जिस युग का नाम उकेरा था
कलयुग में हम जीते हैं
ये जीवन बड़ा ही फि़का है ।
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