खाई...
जिंदगी जहाँ पे ठहरी है
मज़हब की खाई गहरी है
खाई में जिन्दा लाशें हैं
लाशों की दुनिया बहरी है
वो खून है तो लाल है
है किसका ये बवाल है
इन्सानियत जब बँट गई
तब से उठा ये सवाल है
अलग अलग हैं खुदा यहाँ...
मज़हब की खाई गहरी है
खाई में जिन्दा लाशें हैं
लाशों की दुनिया बहरी है
वो खून है तो लाल है
है किसका ये बवाल है
इन्सानियत जब बँट गई
तब से उठा ये सवाल है
अलग अलग हैं खुदा यहाँ...