...

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सूखा ठूंठ हूँ
#Invisible
सूखा ठूंठ हूँ , आज भी किसी का वजूद हूँ मैं।
हुआ करता था कभी हरा-भरा, क्या सबूत दूँ मैं?
शाखाएंँ थीं कभी आसमान को छूती हुई।
परिंदों का आशियाना ढूंढती है अब यादें
काट दिए जाते है, पेड़ खुद कभी कटते नहीं,
सूखा ठूंठ हूँ , आज भी किसी का वजूद हूँ मैं।



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