व्यथा
बिन बोले समझ जाए वैसा अब कुछ रहा नहीं
शायद दूर हो रहे थे हम-सब यूं ही
एक ही छत के नीचे
घुट घुट कर जी रहे हैं
खुशियों में अब हिस्सेदारी रही नहीं
ग़म के तो किस्से...
शायद दूर हो रहे थे हम-सब यूं ही
एक ही छत के नीचे
घुट घुट कर जी रहे हैं
खुशियों में अब हिस्सेदारी रही नहीं
ग़म के तो किस्से...