कुमुद और कुमुदिनी वार्तालाप
हे कुमुद! कुमुदिनी जाग उठी,
कोमल किसलय नभतल कुसुमित,
श्वेतार्क शिखर तक ढांक उठी,
मधु गूंजित भ्रमर की आस तके,
सरोवर जल में संध्या स्नान करे,
रवि प्रभा की स्वर्णिम रश्मि लिए,
शेखर से सोम रस पान किए,
बैठी है ध्यान की मुद्रा में अब,
गृह उपवन क्षण भंगुर ये भान किए,
तप कैसा ये विस्मृत आनंद लिए,
खग मृग को भी है मौन किए,
बक पंक्ति लगाकर बैठे सब,
अमरत्व का अंश...
कोमल किसलय नभतल कुसुमित,
श्वेतार्क शिखर तक ढांक उठी,
मधु गूंजित भ्रमर की आस तके,
सरोवर जल में संध्या स्नान करे,
रवि प्रभा की स्वर्णिम रश्मि लिए,
शेखर से सोम रस पान किए,
बैठी है ध्यान की मुद्रा में अब,
गृह उपवन क्षण भंगुर ये भान किए,
तप कैसा ये विस्मृत आनंद लिए,
खग मृग को भी है मौन किए,
बक पंक्ति लगाकर बैठे सब,
अमरत्व का अंश...