...

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चल उठते हैं।
बहुत ढूंढ़ लिया है हाथों को
चल खुद ही कदम बढ़ाते हैं।

क्यों सोच रही है गलियों को
खुली सड़क पे दौड़ लगते हैं।

बहुत देख चुके हैं लोगों को
चल अब हम कुछ कर के दिखाते हैं।

बस रह चुके खयालों में डूबे
चल हकीक़त में जी जाते...