...

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वो माँ है!!!!!
देखते ही हमे खिल उठती है।
कुछ भी करें हम चुप चाप सह लेती है।
बड़े कितने भी हो हम,
पर प्रेम हमें छोटे बच्चों सा करती है।
वो माँ है देखते ही हमे खिल उठती है।

वो हमे पौधों की तरह सींचती है ।
दिन भर की धूप के बाद शाम को,
अपने आँचल मे समेटती है ।
खाद पानी से सींच कर हमे अपनी गोद में लेती है।
वो माँ है देखते ही हमे खिल उठती है ।

हमे सलामत देख कर,
अपने सारे दर्द भूल जाती है।
सारे दर्द सह कर भी हमे अपनी
ख़ुशी का एहसास दिलाते हैं।
वो माँ है हमे देखते ही खिल उठती है।

क्या करूँ मैं परिभाषित ऐसे प्रेम को,
भावना उसके समर्पण की निःशब्द कर देती है मुझे।
निःस्वार्थ भाव से प्रेम करती हैं वो।
वो माँ है देखते ही हमे खिल उठती है ।